पूर्व रजिस्ट्रार ने जितेंद्र मिश्रा एवं यूनिवर्सिटी प्रबंधन की मिलीभगत की सीबीआई स्तर से जांच की मांग की
करैरा : - मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित पीके यूनिवर्सिटी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के सनसनीखेज आरोप सामने आए हैं। विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार चेतन नेमाड़े ने विश्वविद्यालय प्रशासन और जितेंद्र मिश्रा नामक व्यक्ति पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिन्हें वे इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड बता रहे हैं। फर्जी डिग्री वितरण, दस्तावेजों में हेराफेरी, पैन कार्ड के दुरुपयोग, और कर्मचारियों के शोषण जैसे मुद्दों ने न केवल विश्वविद्यालय की साख पर सवाल उठाए हैं, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में नैतिकता और पारदर्शिता की कमी को भी उजागर किया है। नेमाड़े ने दावा किया है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के कारण उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिससे पीड़ितों को न्याय की उम्मीद धूमिल हो रही है। यह खबर शिक्षा व्यवस्था में सुधार और उच्चस्तरीय जाँच की माँग को और बल देती है।
फर्जी डिग्रियाँ और शिक्षा को करते धूमिल यूनिवर्सिटी प्रबंधक
चेतन नेमाड़े ने बताया कि पीके यूनिवर्सिटी में नियमित कक्षाएँ लगभग न के बराबर होती हैं। बिना पढ़ाई के ही छात्रों को डिग्रियाँ दी जा रही हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। नेमाड़े का कहना है कि यह प्रथा मेहनती और योग्य छात्रों के लिए अन्यायपूर्ण है, क्योंकि फर्जी डिग्रीधारक उच्च अंकों के आधार पर नौकरियों में चयनित हो रहे हैं, जिससे मेहनत करने वाले छात्रों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। इसके अलावा, विश्वविद्यालय में प्रायोगिक परीक्षाएँ केवल कागज़ी हैं, और बिना किसी वास्तविक प्रयोग के छात्रों को अंक दे दिए जाते हैं। नेमाड़े ने आरोप लगाया कि जितेंद्र मिश्रा इस फर्जीवाड़े के केंद्र में हैं, जो बिना सत्यापन के सर्टिफिकेट बनवाने की प्रक्रिया को संचालित करते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में कोई भी व्यक्ति, बिना किसी जाँच के, किसी का भी सर्टिफिकेट बना सकता है, जो शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता को पूरी तरह से ध्वस्त करता है। नेमाड़े ने यह भी खुलासा किया कि विश्वविद्यालय के उच्च पदों जैसे कुलाधिपति, कुलपति, और कुलसचिव की नियुक्ति और कार्यकाल की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, जिससे प्रशासनिक पारदर्शिता की कमी साफ झलकती है।
जितेंद्र मिश्रा के दस्तावेजों में हेराफेरी और पैन कार्ड का दुरुपयोग
चेतन नेमाड़े ने जितेंद्र मिश्रा पर सबसे गंभीर आरोप लगाए हैं, वे पहले सुपरवाइज़र के पद पर रहे और अब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर डायरेक्टर बन गए। नेमाड़े ने सवाल उठाया कि एक उसी संस्था में कार्यरत व्यक्ति उसी विश्वविद्यालय में कैसे प्रवेश ले सकता है और डिग्री हासिल कर सकता है। इसके अलावा, विश्वविद्यालय द्वारा नकद लेनदेन में कर्मचारियों के पैन कार्ड का दुरुपयोग किया गया। नेमाड़े ने स्वयं इसका शिकार होने का दावा किया, जब उनके पैन कार्ड का बिना अनुमति उपयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इनकम टैक्स विभाग से ₹3.5 करोड़ की रिकवरी का नोटिस मिला। नेमाड़े ने बताया कि उन्हें इस दुरुपयोग की जानकारी तब हुई, जब नोटिस उनके पास पहुँचा। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रबंधन पर आरोप लगाया कि वे जानबूझकर कर्मचारियों और अन्य लोगों के पैन कार्ड का उपयोग अवैध लेनदेन को छिपाने के लिए करते हैं। इसके अलावा, नियुक्ति पत्रों में भी फर्जीवाड़ा सामने आया है। नेमाड़े को उनका नियुक्ति पत्र देर से मिला, और उस पर हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति उस समय विश्वविद्यालय में कार्यरत ही नहीं था।
कर्मचारियों का शोषण और शिकायतों पर कार्रवाई की कमी
नेमाड़े ने बताया कि जब उन्होंने विश्वविद्यालय के फर्जीवाड़े में सहयोग करने से इनकार किया, तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया और उनकी ₹20 लाख की बकाया वेतन राशि का भुगतान नहीं किया गया। इसके अलावा, नौकरी छोड़ने के बाद भी उनका नाम विनिमय आयोग की सूची में गलत तरीके से शामिल रहा, जिसे वे एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा मानते हैं। नेमाड़े ने इस पूरे मामले की शिकायत मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर दर्ज की, लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन और स्थानीय अधिकारियों की कथित मिलीभगत के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। नेमाड़े का कहना है कि यह भ्रष्ट तंत्र इतना मज़बूत है कि आम कर्मचारी या शिकायतकर्ता को न्याय मिलना लगभग असंभव है। उन्होंने जितेंद्र मिश्रा को इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड बताते हुए कहा कि मिश्रा हर स्तर पर अनियमितताओं को अंजाम दे रहे हैं, और उनकी गतिविधियों पर कोई रोक-टोक नहीं है। नेमाड़े ने माँग की है कि इस मामले की जाँच केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए, ताकि दोषियों को सजा मिले और शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता बहाल हो। स्थानीय लोग और पूर्व कर्मचारी भी इस मामले में उच्चस्तरीय जाँच की माँग कर रहे हैं, क्योंकि यह घोटाला न केवल विश्वविद्यालय की साख को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में विश्वास को भी कमज़ोर कर रहा है।