भार्गव जी ने कहा कि युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ।
परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए।
अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ पंडित बृजेश जी भार्गव ने भागवत महात्म्य पर विस्तृत चर्चा की। महाराज ने कहा कि प्रभु से बढ़कर कोई सुख और संपदा नहीं है व्यक्ति को चाहिए कि हमेशा हरि का नाम स्मरण करता रहे।
कथा विश्राम के बाद मुख्य यजमान धाकड़ परिवार ने व्यासपीठ की आरती उतारी। और प्रसादी वितरण की। कथा में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है जिसमें महिला बच्चे बुजुर्ग सभी भारी संख्या में शामिल रहे कथा का समय प्रतिदिन दोपहर 1:00 से शाम 5:00 बजे तक रहेगा। कथा के यजमान धाकड़ समाज ने सभी से समय पर आकर कोलारस के श्रद्धालुओं से धर्म लाभ लेने की अपील की है।